When I was leaving Dehradun...
जा तो रहा हूँ देहरादून छोड़ के,
चार साल पुराने रिश्तों को तोड़ के,
सबको छोड़ के सबका दिल तोड़ के,
इन हसीन वादियों से मुँह मोड़ के,
ख़ाली और वीरान कमरे को छोड़ के,
कुछ नए और कुछ अटूट बंधन जोड़ के,
मगर ये वादा है मेरा.......................
मैं फिर कभी आऊँगा सारी बंदिशें तोड़ के..
जा तो रहा हूँ देहरादून छोड़ के,
चार साल पुराने रिश्तों को तोड़ के,
सबको छोड़ के सबका दिल तोड़ के,
इन हसीन वादियों से मुँह मोड़ के,
ख़ाली और वीरान कमरे को छोड़ के,
कुछ नए और कुछ अटूट बंधन जोड़ के,
मगर ये वादा है मेरा.......................
मैं फिर कभी आऊँगा सारी बंदिशें तोड़ के..
=================================================
क्यूँ हुआ था
मुझे भी कभी
प्यार,
क्यूँ दिखा था मुझे पतझर में बहार,
क्यूँ देख लिया था मैंने उनमे सारा संसार,
क्यूँ हुआ था आसमानी बादल सा वो बयार,
क्यूँ बरखा कर ना पाई थी मौसम को इनकार,
क्यूँ अमावस में भी रहती थी चाँद की दरकार,
कभी दोनों को वक़्त मिला तो ज़रूर बताऊंगा...
क्यूँ हुआ था मुझे भी कभी प्यार..............!!!
क्यूँ दिखा था मुझे पतझर में बहार,
क्यूँ देख लिया था मैंने उनमे सारा संसार,
क्यूँ हुआ था आसमानी बादल सा वो बयार,
क्यूँ बरखा कर ना पाई थी मौसम को इनकार,
क्यूँ अमावस में भी रहती थी चाँद की दरकार,
कभी दोनों को वक़्त मिला तो ज़रूर बताऊंगा...
क्यूँ हुआ था मुझे भी कभी प्यार..............!!!
================================================
When I came to Delhi for the first time...
नदिया किनारे मेरा गाँव है,उस पार
जाने को
नाव है,
चारों तरफ हरियाली है और हरे पेड़ों की घनी छाँव है,
अपना घर,अपने लोग और काले कौवों की भी कांव है,
ना ही अपनेपन की कमी, ना ही किसी चीज का अभाव है|
ये शहर है,यहाँ ना तो नाव है,ना छाँव है,ना ही काले कौवों की कांव है,
यहाँ ना तो अपना घर है,और ना ही अपना लश्कर-लाव है,
यहाँ तो सबमे दिखती बस एक दुसरे को लूटने की हाव-भाव है,
यहाँ सभी अजनबी हैं,सबके पास अलाव है,सबकी अपनी ताव है,
यहाँ लोग पड़ोसियों को भी नहीं जानते,फिर भी क्यूँ मनं में घाव है?,
होगा किसी दिन अपना भी घर,लोग भी होंगे अपने,ये तो बस ख्याली पुलाव है|
चारों तरफ हरियाली है और हरे पेड़ों की घनी छाँव है,
अपना घर,अपने लोग और काले कौवों की भी कांव है,
ना ही अपनेपन की कमी, ना ही किसी चीज का अभाव है|
ये शहर है,यहाँ ना तो नाव है,ना छाँव है,ना ही काले कौवों की कांव है,
यहाँ ना तो अपना घर है,और ना ही अपना लश्कर-लाव है,
यहाँ तो सबमे दिखती बस एक दुसरे को लूटने की हाव-भाव है,
यहाँ सभी अजनबी हैं,सबके पास अलाव है,सबकी अपनी ताव है,
यहाँ लोग पड़ोसियों को भी नहीं जानते,फिर भी क्यूँ मनं में घाव है?,
होगा किसी दिन अपना भी घर,लोग भी होंगे अपने,ये तो बस ख्याली पुलाव है|
===========================================
वो नहीं तो और सही,और नहीं
तो और
सही |
आज नहीं तो कल सही ,कल नहीं तो कल सही|
साथ नहीं तो साया सही ,साया नहीं तो ख़ाब सही|
आज नहीं तो कल सही ,कल नहीं तो कल सही|
साथ नहीं तो साया सही ,साया नहीं तो ख़ाब सही|
================================================
ग़र है मोहब्बत तो क़ह
भी दीजिए,
यूँ ही हसीन रातों को ज़ाया ना कीजिए|
आप कहते हो मैं सलीक़े से पेश नहीं आता,
आप तो बेरुख़ी से पेश आया ना कीजिए|
यूँ ही हसीन रातों को ज़ाया ना कीजिए|
आप कहते हो मैं सलीक़े से पेश नहीं आता,
आप तो बेरुख़ी से पेश आया ना कीजिए|
================================================
कभी दो पल में ही
दोस्ती हो
जाती है,♥ ♥ !
तो कभी दोस्ती करने में ज़िंदगी बीत जाती है|('.')
कभी वो नीम सा कड़वा ह्रदय दिखा जाती है,(^_^)
तो कभी वो शहद से भी मीठी बन जाती है|( ♥ _ ♥ )
तो कभी दोस्ती करने में ज़िंदगी बीत जाती है|('.')
कभी वो नीम सा कड़वा ह्रदय दिखा जाती है,(^_^)
तो कभी वो शहद से भी मीठी बन जाती है|( ♥ _ ♥ )
================================================
बेशक़ बेबाकपन था आपमें,समझने
में मेरी
बातों को|
यूँ ही बेमतलब जागती रही थी आखें मेरी रातों को|('.')
मैंने चुरा लिया था जिंदगी को,कुछ ही पल के जीवन से|
गरजता बादल था मैं कुछ पल का,घिरा था किरण से|♥
मेरा इश्क़ नादान था,जलता रहा था धीमी आँच पर|(^_^)
मैं और मेरी परछायी दोनों,सरेराह चले थे काँच पर|(,)
खोया तो उसी को,जिसे देखा करता था कभी सपनो में|(♥ _ ♥)
जिंदगी अब भी ख़ाब देख रही है,सपने बदल जाए अपनों में|
यूँ ही बेमतलब जागती रही थी आखें मेरी रातों को|('.')
मैंने चुरा लिया था जिंदगी को,कुछ ही पल के जीवन से|
गरजता बादल था मैं कुछ पल का,घिरा था किरण से|♥
मेरा इश्क़ नादान था,जलता रहा था धीमी आँच पर|(^_^)
मैं और मेरी परछायी दोनों,सरेराह चले थे काँच पर|(,)
खोया तो उसी को,जिसे देखा करता था कभी सपनो में|(♥ _ ♥)
जिंदगी अब भी ख़ाब देख रही है,सपने बदल जाए अपनों में|
==================================================
डूबना तो मैं चाहता था
आपकी मोहब्बत
में गहराई
तक,आपने
डूबने कहाँ
दिया|
मझदार में छोड़ा तो था आपने मुझे जान-बूझकर,मग़र दरिया बहने कहाँ दिया|
जाना तो मै चाहता था आपकी नज़रों से दूर,अपनी आँखों से ओझल होने कहाँ दिया|
मुझे ही कोहिनूर का बेशकीमती हीरा समझा,कोयले को कोयला रहने कहाँ दिया|
मुझमें कहाँ हिम्मत थी करीब आने की आपकी,फ़ासले को दरमियाँ रहने कहाँ दिया|
साज़ पर सात सुरों को तो मैंने भी छेड़ा था,आपने ताल से ताल मिलने कहाँ दिया|
ज़ीना तो मै हर ज़र्रे को हर पल में चाहता था,हर लम्हें को आपने बीतने कहाँ दिया|
शायर,कवि,लेखक और ना जाने क्या क्या बना दिया,मुझको मुझे रहने कहाँ दिया|
मझदार में छोड़ा तो था आपने मुझे जान-बूझकर,मग़र दरिया बहने कहाँ दिया|
जाना तो मै चाहता था आपकी नज़रों से दूर,अपनी आँखों से ओझल होने कहाँ दिया|
मुझे ही कोहिनूर का बेशकीमती हीरा समझा,कोयले को कोयला रहने कहाँ दिया|
मुझमें कहाँ हिम्मत थी करीब आने की आपकी,फ़ासले को दरमियाँ रहने कहाँ दिया|
साज़ पर सात सुरों को तो मैंने भी छेड़ा था,आपने ताल से ताल मिलने कहाँ दिया|
ज़ीना तो मै हर ज़र्रे को हर पल में चाहता था,हर लम्हें को आपने बीतने कहाँ दिया|
शायर,कवि,लेखक और ना जाने क्या क्या बना दिया,मुझको मुझे रहने कहाँ दिया|
=====================================================
आपकी और मेरी कहानी एक
जिंदगी है...
No comments:
Post a Comment